Sunday 27 November 2016




निचली अदालतें या अधीनस्थ न्यायालय

भारत में न्यायिक प्रणाली
भारत सरकार की तीन स्वतंत्र शाखाएं हैं - कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका। भारतीय न्यायिक प्रणाली अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान बनाई थी। इस प्रणाली को आम कानून व्यवस्था के रुप में जाना जाता है जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं। विभिन्न तरह की अदालतें देश में कई स्तर की न्यायपालिका बनाती हैं। भारत की शीर्ष अदालत नई दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट है और उसके नीचे विभिन्न राज्यों में हाई कोर्ट हैं। हाई कोर्ट के नीचे जिला अदालतें और उसकी अधीनस्थ अदालतें हैं जिन्हें निचली अदालत कहा जाता है।
भारतीय संविधान के छठे भाग में निचली अदालतों से संबंधित प्रावधान प्रदान दिए गये हैं। अनुच्छेद 233-237 अधीनस्थ अदालतों से संबंधित मामलों की देखरेख करते हैं।
न्यायालयों पर नियंत्रण –
यह ऊपरी पर्यवेक्षी और अपीलीय अधिकार क्षेत्र का एक विस्तार होता है। यह सर्वविदित है कि उच्च न्यायालय किसी भी अधीनस्थ अदालत या न्यायालय में लंबित मामलों को उस स्थिति में वापस ले सकता है जब कानून पर महत्वपूर्ण प्रश्न चिह्न लगने लगते हैं। इस मामले को निपटाकर या कानूनी प्रश्न का हल कर इसे उसी अदालत को वापस सौंप दिया जाता है। दूसरे मामले में उच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तुत की गयी राय अधीनस्थ अदालत के लिए बाध्यकारी होती है। अधीनस्थ अदालतें सदस्यों की पदोन्नति तैनाती, छुट्टी के अनुदान, स्थानांतरण और अनुशासन से संबंधित मामलों को भी हल करती हैं। उच्च न्यायालय के पास इसके अधिकारियों और कर्मचारियों के ऊपर पूरा अधिकार और नियंत्रण होता है। इस संदर्भ में यह मुख्य न्यायाधीश द्वारा निर्देशित मुख्य न्यायाधीश या इस तरह के अन्य उच्च न्यायाधीशों के लिए के लिए अधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति करती हैं। हालांकि राज्य के राज्यपाल को जब भी नियमों की आवश्यकता होती है तो ऐसे मामलों में निर्दिष्ट नियमों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कोर्ट से संलग्न नहीं करते हैं और राज्य न्यायालय लोक सेवा आयोग के साथ परामर्श के बाद ही अदालत से संबंध रखने वाले किसी भी कार्यालय में नियक्ति कर सकता है।
निचली अदालतों में जिला न्यायाधीश, शहर के सिविल न्यायालयों के न्यायाधीश, मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट और राज्य न्यायिक सेवा के सदस्य शामिल होते हैं।
जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति
अनुच्छेद 233 के अनुसार,
1) किसी भी राज्य में जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों और पदोन्नति को उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्य के संबंधित अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत राज्य के राज्यपाल द्वारा किया जाएगा।
2) एक व्यक्ति जो पहले से ही संघ या राज्य की सेवा में कार्यरत नहीं है वहीं जिला न्यायाधीश के पद नियुक्त होने का योग्य होता है लेकिन इसके लिए उसके पास एक वकील के रूप में कम से कम 7 साल का अनुभव होना चाहिए और नियुक्ति के लिए उसकी सिफारिश उच्च न्यायालय द्वारा सिफारिश की होनी चाहिए। निचली अदालतों पर नियंत्रण सामूहिक होता है और यह उच्च न्यायालय की जिम्मेदारी होती है क्योंकि वह राज्य में न्यायपालिका का प्रमुख होता है और उसका कुछ मामलों में निचली अदालतों पर प्रशासनिक नियंत्रण भी होता है।

Tuesday 22 November 2016

रॉ (RAW) से संबंधित रोचक तथ्

रॉ (अन्वेषण एवं विश्लेषण विभाग) भारत की बाह्य खुफिया एजेंसी है। 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारत में एक अलग बाह्य खुफिया एजेंसी की जरूरत महसूस की गई और 21 सितंबर, 1968 को रॉ की स्थापना की गयी थी| 1968 से पहले तक भारत की आंतरिक एवं बाह्य खुफिया सूचनाओं की जानकारी का दायित्व इन्टेलिजेन्स ब्यूरो (आईबी) के पास था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है| रॉ के पहले निदेशक रामेश्वर नाथ काव थे|
इस संगठन की स्थापना पाकिस्तान और चीन के बारे में खुफिया जानकारी जुटाने के लिए और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में कारवाई हेतु अपनी क्षमता को मजबूत करने के लिए की गयी थी। बाद में रॉ (अन्वेषण एवं विश्लेषण विभाग) को आसपास के देशों में सैन्य और राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखने के लिए, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के निर्माण में एवं यूरोपीय देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन से पाकिस्तान को सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ति पर नियंत्रण करने जैसे कार्यों में लगाया गया था|

1. 1971 में रॉ ने बांग्लादेश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी|
रॉ ने मुक्ति वाहिनी सेना (एक बांग्लादेशी गुरिल्ला संगठन) को प्रशिक्षण, खुफिया जानकारी और गोला बारूद की आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| इसके अलावा रॉ ने पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों को भी बाधित किया था और अंततः बांग्लादेश नाम का एक नया देश अस्तित्व में आया था|
2. ऑपरेशन मेघदूत
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1984 में रॉ ने भारतीय सेना को पाकिस्तान के बारे में एक मत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई थी जिसके अनुसार पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर के साल्टोरो रिज पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन अबाबील नाम से आक्रमण की योजना बना रहा था| अतः भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत की शुरूआत की थी और करीब 300 सैनिकों को साल्टोरो रिज में तैनात किया गया था| परिणामस्वरूप पाकिस्तान की सेना को पीछे हटना पड़ा था|
3. रॉ ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण अर्थात ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा की योजनाओं को गोपनीय रखा था|
1974 में रॉ ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण की योजनाओं को गोपनीय रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| चीन और अमेरिका जैसे देश भी भारत की इस गतिविधि के बारे में पूरी तरह से अनजान थे।
4. 'ब्लैक टाइगररवींद्र कौशिक कौन थे और उनके कारनामे क्या थे?
रविन्द्र कौशिक एक मशहूर थिएटर कलाकार थे और 1975 में रॉ के अधिकारियों द्वारा उन्हें एक जासूस के रूप में पाकिस्तान भेजा गया था,  जहाँ वे पाकिस्तानी सेना में शामिल होने में कामयाब रहे और मेजर के पद तक पहुँचने में सफल हुए थे| उन्होंने खुफिया एजेंसियों को बहुमूल्य जानकारी भेजकर हजारों भारतीयों की जिन्दगी बचाई थी, और इसलिए रॉ द्वारा उन्हें 'ब्लैक टाइगर' की उपाधि प्रदान की गई थी|

ऑपरेशन कैक्टस
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पीपुल्स लिबरेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) नामक एक तमिल आतंकवादी संगठन ने नवंबर 1988 में मालदीव पर आक्रमण किया था| जिसके कारण मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम ने भारत से मदद मांगी थी| तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भारतीय सेना के 1600 सैनिकों को मालदीव में व्यवस्था बहाल करने के लिए मालदीव के हुल्हुले द्वीप पर हवाई मार्ग से भेजने का आदेश दिया था और रॉ ने सेना को आवश्यक खुफिया सूचनाएं प्रदान की थी| अंततः भारतीय सैनिक कुछ ही घंटों के भीतर वहाँ शासन बहाल करने में सफल हुए थे।
6. नॉर्दन अलाइंस ( Northern Alliance) को समर्थन
पाकिस्तान और अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करने के बाद भारत ने तालिबान सरकार और सोवियत संघ के विरोध में खड़े नॉर्दन अलाइंस को समर्थन देने का निर्णय लिया| 1996 में फरखोर एयर बेस में रॉ द्वारा 25 बिस्तरों वाले सैन्य अस्पताल का निर्माण किया गया था। इस हवाई अड्डे का उपयोग नॉर्दन अलाइंस को सहायता कर रहे रॉ के सहायक भारतीय एविएशन रिसर्च सेंटर द्वारा किया गया था| इसके अलावा भारत द्वारा 2001 में अफगान युद्ध में नॉर्दन अलाइंस के साथ रिश्तों को और भी पुख्ता किया गया, जब भारत ने नॉर्दन अलाइंस को अधिक ऊंचाई पर युद्ध करने के लिए आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति की थी और रॉ कुंदुज़ एयरलिफ्ट की सीमा निर्धारित करने वाली पहली खुफिया एजेंसी बनी थी।
7. कारगिल युद्ध

कारगिल युद्ध के दौरान रॉ ने बीजिंग में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ और इस्लामाबाद में चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अजीज के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत को सफलतापूर्वक टेप किया था| यह टेप कारगिल घुसपैठ में पाकिस्तान की  संलिप्तता साबित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

ऑपरेशन चाणक्य
कश्मीर में शांति बहाल करने के लिए और अलगाववादी समूहों के घुसपैठ को रोकने के लिए रॉ द्वारा ऑपरेशन चाणक्यचलाया गया था| इस ऑपरेशन के द्वारा घाटी में आतंकवादी गतिविधियों को बेअसर करने में सफलता मिलीं थी| इसके अलावा अलगाववादी समूहों और अन्य आतंकवादियों के साथ आईएसआई के शामिल होने के बारे में सबूत एकत्रित किये गए थे और आतंकवादी संगठन हिज्ब-उल-मुजाहिदीन को विभाजित कर कश्मीर समर्थक भारतीय समूह बनाने में सफलता प्राप्त हुई थी|
9. क्या आप जानते हैं कि रॉ ने मुंबई हमले से 2-6 महीने पहले आतंकवादियों की बातचीत को सफलतापूर्वक टेपकिया था?
लेकिन आपसी समन्वय की विफलता के कारण पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की जा सकी थी| रॉ के टेक्नीशियन आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किये गए छह फोन पर नजर रखे हुए थे और उन्होंने आतंकवादियों एवं उनके आकाओं के बीच की बातचीत को भी टेप किया था|
10. स्नैच ऑपरेशन
इस ऑपरेशन के तहत संदिग्ध व्यक्तियों को विदेशों में गिरफ्तार किया जाता है और भारत लाया जाता है| इसके बाद अज्ञात स्थलों पर उनसे पूछताछ की जाती है और अंततः औपचारिक रूप से एक हवाई अड्डे पर या सीमा चौकी पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है| रॉ द्वारा पड़ोसी देशों में चलाये गए स्नैच ऑपरेशन द्वारा लश्कर के आतंकी तारिक महमूद, अब्दुल
करीम टुंडा (मुंबई हमलों का एक संचालक), शेख अब्दुल ख्वाजा एवं आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के संचालक यासीन भटकल को गिरफ्तार करने में सफलता मिली है|
ये गुप्त योद्धा हमारी सुरक्षा के लिए दिन और रात काम करते हैं और खामोशी से हमारे देश की रक्षा कर रहें हैं जिसके लिए हमें उन पर गर्व होना चाहिए|

जानिए पुलिस FIR से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य



भारत जैसे विशाल देश में विधि-व्यवस्था को बनाये रखने हेतु हमारे संविधान के द्वारा कानून-व्यवस्था की नींव रखी गई थी| भारतीय सेना एवं अन्य अर्द्धसैनिक बलों के विपरीत हमारी पुलिस-व्यवस्था का मुख्य कार्य देश में आतंरिक शांति एवं सुरक्षा को बनाये रखना है| लेकिन हमारे देश में हर कोई पुलिस स्टेशन जाने से बचता है| इसका कारण यह है कि लोगों को आमतौर पर पुलिस की कारवाई के तौर-तरीके की जानकारी नहीं होती है| क्या आपने कभी सोचा है की किसी भी अपराध के छानबीन एवं गुनाहगार तक पहुँचने की प्रक्रिया की शुरुआत आखिर कहाँ से होती है? जी हाँ आपने सही सोचा, इसकी शुरूआत FIR या प्राथमिक सूचना रिपोर्ट से होती है| इस लेख में हमने FIR  से संबंधित समस्त जानकारियों का विवरण देकर एवं विभिन्न भ्रांतियों को दूर कर लोगो का मार्गदर्शन करने की कोशिश की है|
FIR क्या होती है?
किसी आपराधिक घटना के संबंध में पुलिस के पास कारवाई के लिए दर्ज की गई सूचना को प्राथमिकी या प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) कहा जाता है| प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) एक लिखित प्रपत्र (डॉक्युमेन्ट) होता है जो पुलिस द्वारा किसी संज्ञेय अपराध (cognizable offence) की सूचना प्राप्त होने पर तैयार किया जाता है| यह सूचना प्रायः अपराध के शिकार व्यक्ति द्वारा पुलिस के पास एक शिकायत के रूप में दर्ज की जाती है। किसी अपराध के बारे में पुलिस को कोई भी व्यक्ति मौखिक या लिखित रूप में सूचित कर सकता है। किंतु कई बार सामान्य लोगों द्वारा दी गई सूचना को पुलिस प्राथमिकी के रूप में दर्ज नहीं करती है। ऐसे में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए कई व्यक्तियों को न्यायालय का भी सहारा लेना पड़ता है। भारतीय दंड संहिता 1973 की धारा 154 के तहत FIR की प्रक्रिया पूरी की जाती है। यह वह महत्वपूर्ण सूचनात्मक दस्तावेज होता है जिसके आधार पर पुलिस कानूनी कारवाई को आगे बढ़ाती है।

कब दर्ज होती है FIR?
FIR संज्ञेय अपराधों (ऐसे अपराध जिसमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होती है) में ही दर्ज होती है। इसके तहत पुलिस को अधिकार होता है कि वह आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करे और जांच-पड़ताल करे| अगर अपराध संज्ञेय नहीं है तो उसकी FIR नहीं लिखी जाती है और ऐसी स्थिति में बिना कोर्ट के इजाजत के कारवाई संभव नहीं हो पाती है|
कैसे दर्ज होती है FIR?
FIR दर्ज कराने के तीन तरीके है:
1. पीड़ित सीधा थाने आकर अपने लिखित या मौखिक बयान के आधार पर FIR दर्ज करा सकता है।
2. पीसीआर कॉल से मिली खबर की जाँच कर FIR दर्ज की जा सकती है।
3. वारदात की खबर मिलने पर थाने का ड्यूटी अफसर ASI को मौके पर भेजता है। ASI चश्मदीदों के बयान दर्जकर रुक्का (एक संक्षिप्त रिपोर्ट) लिखता है। इस रुक्के के आधार पर पुलिस FIR दर्ज करती है। यह तरीका सिर्फ जघन्य वारदात के दौरान ही अपनाया जाता है।

FIR दर्ज करने में क्यों लगती है देर?
पुलिस ज्यादातर मामलों में शिकायत मिलते ही FIR दर्ज नहीं करती है| वारदात की प्रमाणिकता जानने के लिए कई बार शिकायत की जाँच की जाती है। बाइक, कार या कोई अन्य सामान चोरी होने पर पुलिस के तुरंत FIR दर्ज न करने की प्रमुख वजह यह है कि पुलिस कुछ दिन तक यह इंतजार करती रहती है कि चोरी किया गया सामान पीड़ित को किसी तरह मिल जाए| दरअसल, कोई भी SHO नहीं चाहता है कि उसके थाने में एफआईआर की संख्या में इजाफा हो। इसके अलावा सभी थानों में स्टेशनरी की भारी किल्लत रहती है। पुलिसकर्मी FIR दर्ज न करने की एक वजह इसे भी बताते है। हर FIR की कॉपी थाने से ACP, Additional DCP-1, Additional DCP-2, District DCP और मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट को भेजी जाती है। जघन्य अपराधों की FIR की कॉपी उस क्षेत्र के जॉइंट कमिश्नर को भी भेजी जाती है|

अगर पुलिस FIR न लिखे तो क्या करना चाहिए?
• संज्ञेय अपराध होने पर भी पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है तो पीड़ित को सीनियर अफसरों से मिलना चाहिए।
• अगर तब भी रिपोर्ट दर्ज न हो, तो CRPC (क्रिमिनल प्रसीजर कोड) के सेक्शन 156(3) के तहत पीड़ित मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दे सकता है। मैट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के पास यह शक्ति है कि वह FIR दर्ज करने के लिए पुलिस को आदेश दे सकता है।
• सुप्रीम कोर्ट ने प्रावधान किया है कि FIR दर्ज न होने पर धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में अपील करने के बजाय मैट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में जाना चाहिए। इसके बाद बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने सेक्शन 156(3) के तहत FIR दर्ज करवाई| हालांकि इस FIR की जांच भी वही पुलिस करती है, जो इसे दर्ज ही नहीं कर रही था। पुलिस के मुताबिक, इस सेक्शन के तहत बहुत सी फर्जी FIR दर्ज कराई गई है। 
• सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी अर्थात FIR दर्ज नहीं करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश भी दिया है। न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि FIR दर्ज होने के एक सप्ताह के अंदर प्राथमिक जांच पूरी की जानी चाहिए। इस जांच का मकसद मामले की पड़ताल कर अपराध की गंभीरता को जांचना है। इस तरह पुलिस इसलिए मामला दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है कि शिकायत की सच्चाई पर उन्हें संदेह है।

NCR (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) क्या है?
किसी सामान की चोरी होने पर IPC की धारा 379 के तहत FIR दर्ज की जाती है और गुम होने पर नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट (NCR) दर्ज की जाती है। NCR थाने के रिकॉर्ड में तो रहती है, लेकिन इसे कोर्ट में नहीं भेजा जा सकता है| पुलिस इसकी तफ्तीश भी नहीं करती है|
FIR औऱ NCR के बीच के अंतर की जानकारी कम लोगों को है। इसी बात का फायदा उठाकर पुलिस अक्सर सामान चोरी होने पर भी NCR थमा देती है। ज्यादातर लोग इसे ही FIR समझ लेते हैं| FIR पर साफ शब्दों में “प्राथमिक सूचना रिपोर्ट” और IPC का सेक्शन लिखा होता है, जबकि NCR पर “नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट” लिखा होता है|
ZERO FIR क्या है?
अक्सर FIR दर्ज करते वक़्त आगे की कार्यवाही को सरल बनाने हेतु इस बात का ध्यान रखा जाता हैं कि घटनास्थल से संबंधित थाने में ही इसकी शिकायत दर्ज हो, परन्तु कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब पीड़ित को विपरीत एवं विषम परिस्थितियों में किसी बाहरी पुलिस थाने में केस दर्ज करने की जरुरत पड़ जाती हैं| मगर अक्सर ऐसा देखा जाता हैं कि पुलिस वाले अपनी सीमा से बाहर हुई किसी घटना के बारे में उतने गंभीर नहीं दिखाए देते हैं| अतः सरकार ने ऐसे विषम परिस्थितियों में भी आपके अधिकारों को बचाए रखने हेतु ZERO FIR का प्रावधान बनाया है| इसके तहत पीड़ित व्यक्ति अपराध के सन्दर्भ में अविलम्ब कार्यवाही हेतु किसी भी पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है एवं बाद में केस को उपरोक्त थाने में ट्रान्सफर भी करवाया जा सकता हैं|

प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) से संबंधित अन्य प्रावधान:
• FIR दर्ज करते समय पुलिस अधिकारी अपनी तरफ से न तो कोई टिप्पणी लिख सकता है और न ही किसी भाग को हाईलाइट कर सकता है|
• संज्ञेय अपराध की स्थिति में सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस अधिकारी को चाहिए कि वह संबंधित व्यक्ति को उस सूचना को पढ़कर सुनाए और लिखित सूचना पर उसके हस्ताक्षर कराए।
• FIR की कॉपी पर पुलिस स्टेशन की मोहर व पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए। इसके साथ ही पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में यह भी दर्ज करेगा कि सूचना की कॉपी आपको दे दी गई है।
• अगर किसी ने संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को लिखित रूप से दी है, तो पुलिस को FIR के साथ उसकी शिकायत की कॉपी लगाना जरूरी है।
• FIR दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि शिकायत करने वाले को अपराध की व्यक्तिगत जानकारी हो या उसने अपराध होते हुए देखा हो।
• अगर किसी कारण आप घटना की तुरंत सूचना पुलिस को नहीं दे पाते हैं तो ऐसी स्थिति में आपको सिर्फ देरी का कारण बताना होगा।
• कई बार पुलिस FIR दर्ज करने से पहले ही मामले की जांच-पड़ताल शुरू कर देती है, जबकि नियमानुसार पहले FIR दर्ज होनी चाहिए तदुपरांत जांच-पड़ताल होनी चाहिए|
• घटना स्थल पर FIR दर्ज कराने की स्थिति में अगर आप FIR की कॉपी नहीं ले पाते हैं, तो पुलिस आपको FIR की कॉपी डाक से भेजेगी।
• आपकी FIR पर क्या कार्रवाई हुई, इस बारे में संबंधित पुलिस अधिकारी आपको डाक से सूचित करेगा|
• अगर सूचना देने वाला व्यक्ति पक्के तौर पर यह नहीं बता सकता कि अपराध किस जगह हुआ तो पुलिस अधिकारी इस जानकारी के लिए प्रश्न पूछ सकता है और फिर निर्णय पर पहुंच सकता है। इसके बाद तुरंत FIR दर्ज कर वह उसे संबंधित थाने को भेज देगा। इसकी सूचना उस व्यक्ति को देने के साथ-साथ रोजनामचे में भी दर्ज की जाएगी।
• अगर शिकायतकर्ता को घटना की जगह की जानकारी नहीं है और पूछताछ के बावजूद भी पुलिस उस जगह को तय नहीं कर पाती है तो भी वह तुरंत FIR दर्ज कर जांच-पड़ताल शुरू कर देगा। अगर जांच के दौरान यह तय हो जाता है कि घटना किस थाना क्षेत्र में घटी है तो केस उस थाने को स्थानान्तरित (ट्रान्सफर) हो जाएगा।
• अगर FIR दर्ज कराने वाले व्यक्ति की मामले की जांच-पड़ताल के दौरान मौत हो जाती है, तो इस FIR को मृत्युकालिक कथन (Dying Declaration) की तरह न्यायालय में पेश किया जा सकता है।
• अगर शिकायत में किसी असंज्ञेय अपराध का पता चलता है तो उसे रोजनामचे में दर्ज करना जरूरी है। इसकी भी कॉपी शिकायतकर्ता को जरूर लेनी चाहिए। इसके बाद मैजिस्ट्रेट से सीआरपीसी की धारा 155 के तहत उचित आदेश के लिए संपर्क किया जा सकता है।

निचे दिए लिंक को क्लिक कर  जाने और भी जानकारी 

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Saturday 22 August 2015

एंड्रॉयड स्मार्टफोन के ये 10 सीक्रेट कोड आपको बना देंगे स्मार्ट 


*#*#0283#*#* : पेकेट लूपबैक के लिए
*#*#0*#*#* : एलसीडी टेस्ट के लिए
*#*#0673#*#* OR *#*#0289#*#* : मेलोडी टेस्ट के लिए
*#*#0842#*#* : स्मार्टफोन में वाइब्रेशन और बैक्लिट टेस्ट के लिए
*#*#2663#*#* : टच स्क्रीन वर्जन के लिए
*#*#2664#*#* : टच स्क्रीन टेस्ट के लिए
*#*#0588#*#* : प्रोक्सिमिटी सेंसर टेस्ट के लिए
*#*#3264#*#* : रैम वर्जन जानने के लिए 

*#*#232338#*#* : वाई-फाई एमएसी एड्रेस देखने के लिए,
*#*#1472365#*#* : जीपीएस टेस्ट के लिए,
*#*#1575#*#*: दूसरे जीपीएस टेस्ट के लिए,
*#*#232331#*#* : ब्लूटुथ टेस्ट के लिए
*#*#232337#*#: ब्लूटुथ डिवाइस का एड्रेस देखने के लिए 

Tuesday 19 May 2015

1. सबसे पहला मिनी कंप्यूटर कब बनाया गया था?
उत्तर : 1965
2. ओपन सोर्स ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रमुख उदाहरण क्या है?
उत्तर : लाइनक्स
3. टैब एलाइनमेंट के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर : 5
4. ई-मेल सेवा सर्वप्रथम किस प्रमुख कंपनी ने प्रारंभ की थी?
उत्तर : हॉटमेल
5. BCD की फुल फॉर्म क्या है?
उत्तर : Binary Coded Decimal
6. PASCAL लैंग्वेज के आविष्कार कौन थे?
उत्तर : Niklaus writh
7. वोलेटाइल मेमरी का एक प्रमुख उदाहरण है?
उत्तर : RAM
8. एमएस वर्ड में करेंट डेट डालने के लिए किन शॉर्टकट ‘कीज’ का
प्रयोग किया जाता है?
उत्तर : Alt+Shift+D
9. CGA की फुल फॉर्म क्या है?
उत्तर : Color Graphics Adapter
10. हेक्साडेसिमल नंबर सिस्टम का बेस क्या होता है?
उत्तर : 16
11. माइक्रोप्रोसेसर का आविष्कार किसने किया था?
उत्तर : Marcian E Huff
12. 1980 में किस कंपनी ने घरेलू उपयोग के लिए पर्सनल कंप्यूटर का
निर्माण किया?
उत्तर : IBM
13. MOSAIC किसका उदाहरण है?
उत्तर : वेब ब्राउजर
14. छोटे एप्लीकेशन प्रोग्राम, जो वेबपेज पर चलते हैं या एनिमेशन
प्रोवाइड करते हैं, क्या कहलाते हैं?
उत्तर : फ्लैश
15. एमएस वर्ड में लाइन के बीच डबल स्पेसिंग देने के लिए किन
शॉर्टकट ‘कीज’ का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर : Ctrl+2